Last modified on 1 अक्टूबर 2013, at 17:07

मकान बा सटल-सटल / रामकिशोर प्रसाद श्रीवास्तव

मकान बा सटल-सटल
हिया मगर बँटल-बँटल

रहल भइल इहाँ कठिन
सनेह मोल बा घटल

पहाड़ पीर हो गइल
मयार आँख ना सटल

जहर भरल हवा इहाँ
बा साँस-साँस से कटल

तमाम उम्र कट गइल
भरम ना प्रीत के हटल