भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मक्खन / ओरहान वेली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चचा हिटलर !
कभी आना हमारे घर
अपनी माँ को दिखाऊँगा
तुम्हारी चोटी और मूँछें

और इसके बदले तुम्हें दूँगा मक्खन
अपनी रसोई के छींके से उतारकर
तुम अपने सैनिकों को देना उसे
खाने के लिए।

सितम्बर, 1939

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय