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मछलियाँ / अनिता भारती

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मछुआरा खड़ा है
हाथ में काँटा लिए

मिसवर्ल्ड, मिसेस वर्ल्ड
और ना जाने
किस-किस साबुन तेल
परफ्यूम
मोबाइल, कार, बाइक के नाम पर
नयी मछलियाँ फंसायेगा
फिर उन मछलियों को
कीमती, सोने-चांदी के तारों से जड़
एक्वेरियम में सजायेगा
लगेगी उन पर संख्याओं की बोली

ये साँचों में ढली
नखरों में पली
सौम्य सभ्यता की पुतलियाँ
अर्धनग्न
तय खूबसूरती के
मानदण्डों पर खरी
ये रंगबिरंगी बेजोड़ खूबसूरत
मछलियाँ
ग्लैमरी संड़ाधों के एक्वेरियम में
इत्मीनान से बैठ
अपने सुन्दर पंख फड़फड़ायेगी
काली, भूरी, सुनहरी आँखों से
कैटवाक करती हुई
एक्वेरियम की दुनिया में
खो जायेंगी

पर मछुआरे को शौक है
विभिन्न साइज, रंग, रूप वाली
मछलियाँ पालना
वह कुछ दिन बाद
जब उकता जायेगा
तब इन पुरानी घिसी-पिटी
रीतिरिवाज -सी मछलियों को फेंक
नयी हाई फाई
फ्रेश मछलियाँ ले आयेगा

तब
पुरानी मछलियाँ रोयेंगी
गिड़गिड़ायेंगी
प्रैस कान्फ्रेंस में एक स्वर से
चिल्लायेंगी
हमारा यौन शोषण हुआ है
हम दर्ज करते हैं अपना बयान
हमें चाहिए न्याय
तब
अखबारों के हर पेज पर होगा
मछलियाँ मछलियाँ और मछलियाँ
अर्धनग्न
हँसती फ्लाइंग किस करती

और तब
मछलियाँ बन जायेगी
भारतीय स्त्री की प्रतीक
अधिकारों की माँग करती
हकों को छीनती

और तब
ये भारतीय मछलियाँ
चली जायेंगी एक-एक कर घरों में
जहाँ ये रखेंगी करवाचौथ
मनायेंगी एकादशी और
धारण करेंगी
लम्बे-लम्बे मंगलसूत्र
सिर्फ़ एक मछुआरे के लिए।