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मजदूर / शिशुपाल सिंह यादव ‘मुकुंद’

तन पर केवल हड्डी दिखती, है कहाँ लहू किसने चूसा
तुम बिखरे हो,हो एक नहीं, बल-हींन तभी तेरा घूसा
तुम आज एक जो जाओ तो,धनिको की लाली उड़ जाए
टूटी सी कुटिल भाग्य रेखा,तब आज अचानक जुड़ जाए
इस धरती पर पावन महान,तव कर्म श्रेष्ट नव निर्झर हैं
भगवान कहाँ तुम खोज रहे,भगवान तुम्हारे दो कर हैं

मजदूर तुम्हारे हाथो से, प्रासाद बने हैं इठलाते
तुमने क्या सुना विभोर हुए,वे प्रशस्ति गीत न गाते
तुम जिसे बना सकते पल में, उसको बिगाड़ सकते भी हो
पर हो सहिष्णु सन्तुलन साथ,हँस-हँस कर तुम रखते भी हो
क्या कहें युगल क्र की महिमा,वे ब्रम्हा विष्णु तथा हर हैं
भगवान कहाँ तुम खोज रहे,भगवान तुम्हारे दो कर हैं

कर में विधान ऐसे तेरे,क्षण में दृढ हिम-गिरि डोल उठे
तस्वीर सृष्टि की एक-एक,मुस्कान लिए झट बोल उठे
कर कर्मनिष्ठ तेरे महान,मजदूर महान तू योगी है
तू शब्दकोश में अमराक्षर,तू विश्व बीच उपयोगी है
नर तू निश्चय का महारथी,तू कर्मो का नर -नाहर है
भगवान कहाँ तुम खोज रहे,भगवान तुम्हारे दो कर हैं

इस नारकीय दुनिया में तो,राह सच है टुक इमान नहीं
मजदूर तुम्ही इंसान भले, तुम पत्थर के भगवान नहीं
तुमने ही ताजमहल गढ़कर,दुनिया को चकित कर डाला
निज खून सीच कर तुमने ही, अपने भारत को है पाला
है नियति चक्र निर्देश यही,तेरे कर में सचराचर है
भगवान कहाँ तुम खोज रहे,भगवान तुम्हारे दो कर हैं

भाखरा बांध का सृजन आज,हाथो से हुआ तुम्हारे ही
दुल्हिन है यह बानी भिलाई,इएसमे है हाथ तुम्हारे ही
मजदूर तुम्हारी शान अजब, दुनिया तुमसे चकराती है
यह प्रकृति तुम्हारे आन-बान, के गीत मनोहर गाती है
यह दुनिया अजब दुरंगी है,वश करो उसे वः बे-डर है
भगवान कहाँ तुम खोज रहे,भगवान तुम्हारे दो कर हैं

मजदूर तुम बहुत,बहुत बड़े,तुम जग में अपर विधाता हो
तुम स्वयं बने हो जन्मे हो,निज दुखों के तुम त्राता हो
काली -काली शची तेज देह,दिखती है शालिगराम महज
माटी से सना कलेवर है,सुन्दर है हर्षोत्फुल सहज
फावड़ा -कुदाली पास रहे, बस यही तुम्हारे प्रभु घर हैं
भगवान कहाँ तुम खोज रहे,भगवान तुम्हारे दो कर हैं