Last modified on 17 सितम्बर 2011, at 18:13

मज़ा आ रहा है ग़ज़ल में तेरी / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"


मज़ा आ रहा है ग़ज़ल में तेरी
लगे जैसे मुख में हो मीठी डली

हवा आंधी बन-बन के कैसे चली
उड़ा ले गई मिट्टी धूलों भरी

लटों को जो तूने यूं झटका दिया
पता बेखबर किस पे बिजली गिरी

निगाहों में कैसी ये मदहोशियाँ
हमें मार डालें न बे मौत ही

पुकारा जो तुमने तो मैं आ गया
मेरी बात "आज़र" न तुमने सुनी