भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मज्जन करि सुभ सरजु / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:32, 10 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मज्जन करि सुभ सरजु-तट ठाढ़े श्रीरघुबीर।
संग अनुज मुनि अमल मन, प्रभु भंजन भवभीर॥
बपु नव-नीरद-नील सुचि, भुवनाभरन रसाल।
सुन्दर पीताबर बिसद भ्राजत उर मनि-माल॥
पुष्पहार मुनि-मन-हरन सुंदर सुषमा-ऐन।
बिकट भ्रुकुटि, चितवनि कुटिल, रस-मद-माते नैन॥
रूप जलधि माधुर्यनिधि उपमा-बिरहित अंग।
रोम-रोम पर बारियै अगनित अजित अनंग॥