Last modified on 22 फ़रवरी 2019, at 13:40

मझधार क्या / राधेश्याम प्रगल्भ

सँघर्ष पथ पर चल दिया
फिर सोच और विचार क्या !

जो भी मिले स्वीकार है
वह जीत क्या, वह हार क्या !

संसार है सागर अगर
इस पार क्या, उस पार क्या !

पानी जहाँ गहरा वहीं
गोता लगाना है मुझे —

तुम तीर को तरसा करो
मेरे लिए मझधार क्या !