भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मति मारौ श्याम पिचकारी / ब्रजभाषा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मति मारौ श्याम पिचकारी, अब देऊँगी मैं गारी॥ टेक
भीजैगी लाज नई मेरी अँगिया, चूँदरि बिगरैगी न्यारी।
देखैगी सास रिसायेगी मोपै, संग की ऐसी हैं दारी,
हँसेंगी दै-दै तारी॥ मति मारौ.
घाट-बाट सब सों अटकत हौ, लै-लै रारि उधारी।
कहाँ लौं तेरी कुचाल कहौं मैं, एक-एक ब्रजनारी,
जानति करतूत तिहारी॥ मति मारौ.
मूठि अबीर न डारौ दृगन में, दूखेंगी आँखि हमारी।
‘नारायण’ न बहुत इतराबौ, छाँड़ौ डगर गिरधारी,
नये-नये तुम हो खिलारी॥ मति मारौ.