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मत्त हंस मिथुन विचरते... / कालिदास

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प्रिये ! आई शरद लो वर!

मत्त-हंस मिथुन विचरते

स्वच्छ फुल्लाम्भोज खिलते

मन्द-गति प्रातः पवन से

वीथियों के जाल हिलते

ज्योति में अवदात वे सर

हृदय हर लेते अवश कर
प्रिये ! आई शरद लो वर!