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मत पूछिये कि साथ ये कैसा लगा मुझे / रंजना वर्मा
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मत पूछिये कि साथ ये कैसा लगा मुझे
आँखों मे कोई आप की रहता लगा मुझे
महफ़िल में मेरे नाम का चर्चा अजीब था
उस ने बुरा कहा भी तो अच्छा लगा मुझे
हम खुल के बात करते रहे आप से मगर
हर बात में है आप की पर्दा लगा मुझे
यूँ तो हज़ार जख़्म मिले बार बार पर
दिल आप की ही राह में टूटा लगा मुझे
गलियाँ ये इश्क़ की हैं बड़ी तंग हो चलीं
मुश्किल भरा ये रास्ता ज्यादा लगा मुझे
करते हैं लोग इश्क़ में कुर्बान जान भी
किस्सा ये इस मुक़ाम पे झूठा लगा मुझे
अपने लिये जिये तो भला काम क्या हुआ
सब कुछ वो दूसरों पे लुटाता लगा मुझे