Last modified on 2 फ़रवरी 2009, at 21:22

मत पूछो क्या है हाल शहर में / प्रकाश बादल

 
मत पूछो क्या है हाल शहर में।
ज़िन्दगी हुई है बवाल शहर में।

कुछ लोग तो हैं बिल्कुल लुटे हुए,
कुछ हैं माला-माल शहर में।

झुलसी लाशों की बू हर तरफ,
कौन रखे नाक पर रूमाल शहर में।

चोर,लुटेरे, डाकू और आतंकवादी,
सब नेताओं के दलाल शहर में।

भौंकते इंसानों को देखकर,
की कुत्तों ने हड़ताल शहर में।

मुहब्बत के मकां ढहने लगे,
मज़हब का आया भूंचाल शहर में।

बिना घूंस के मिले नौकरी,
ये उठता ही नहीं सवाल शहर में।