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मदद को कोई क्यों आए, सभी जब ग़म के मारे हैं / हरिराज सिंह 'नूर'

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मदद को कोई क्यों आए , सभी जब ग़म के मारे हैं।
कोई उनमें से आ जाए फ़लक पर जो सितारे हैं।

सही नुक़्सान का ब्यौरा यहाँ रखना भी मुश्किल है,
वो कारोबार उनका है कि जिसमें वारे-न्यारे हैं।

भँवर में जा के डूबे या किनारे जा लगे कश्ती,
हमें कहना नहीं कुछ भी कि हम तेरे सहारे हैं।

वज़ाहत उनकी कर पाना बहुत मुश्किल है लोगों को,
मिरी ग़ज़लों के वो अशआर जो तुमने सँवारे हैं।

पहुँचना गैर मुमकिन है किसी का पास तक उनके,
तसव्वुर में जो रहते हैं, करम फ़रमा हमारे हैं।

जो मिलते ही नहीं आख़िर समुन्दर से कभी पहले,
उफनती उस नदी के हम जुदा वो दो किनारे हैं।