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मदन को मद मतवारी झूमि झाँकै / अज्ञात कवि (रीतिकाल)

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मदन को मद मतवारी झूमि झाँकै ,
सदन थिरात न मिराति रति रँगना ।
प्रीतम के रूप को मया सी अचवत तन ,
प्यासी ये रहति जौ लहत सुख सँगना ।
प्रेमरस बस प्यावै प्यार सोँ अधर रस ,
लागत नखच्छत रुचिर भूष भँगना ।
अँग अँग उमगि अनँग उपजावति ,
अलिँगन अघात न कलिँग की कुलँगना।


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।