भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मधुऋतु मधुकर बांटय / नरेश कुमार विकल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:22, 22 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश कुमार विकल |संग्रह=अरिपन / नर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चहुँदिस चान छिड़िआबय, सिनेहिया।

पतझड़ कें संगे-संग परती नचैये।
जरलाही कोइली ने की-की बजैये।
हरियर-हरियर धरती कें आँचर मे-
चकमक गोटा लगाबय, सिनेहिया।

जरि गेल जाड़ो कें दिन अन्हरिया।
पीपर कें पात गोर कोनो ने करिया।
पुरूब कें ओर सँ डोर लगौने-
सुरूज किरण छिटकाबय, सिनेहिया।

सरिसों सरस-साज श्रृंगार कयने।
गर्दनि मे पीयर कें हार पहिरने।
फूलक पात पर घात लगौने-
मस्त भ्रमर गुन-गुनाबय, सिनेहिया।

मंजर सुगन्ध बन्द चुबैछ काँच।
पुलकित पात-पात नाचैछ गाछ।
बांसक दोगे सँ घौनी चिरइयाँ-
सुतल पिरितिया जगाबय, सिनेहिया।

तरूणीक तान तारूण्यक ताल।
टेसू-सिंगरहार-तिलकोर लाल।
बितल वियोगिनी कें दारूण अन्हरिया-
मधुऋतु मधुकर बाँटय, सिनेहिया।