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<poem>
मधुमासी दिन बीत चुके हैं
 
सुख के सागर रीत चके हैं
 
आज महाभारत से पहले
 कौरव बाजी बाज़ी जीत चुके हैं आँगन -आँगन सन्नाटा है
दुखियारों की रात बड़ी थी
 पैरों में ज़जीर पडी पड़ी थी 
दशरथ तो वर भूल चुके थे
 कैकेयी की आँख गडी गड़ी थी 
पुरखों की गति सिखलाती है
धर्म निभाने में घाटा है ।
धर्म निभाने में घाटा है   ताने बाने बिखरे -बिखरे  सभी सयाने बिखरे -बिखरे 
जीवन ने वो रूप दिखाया
 हम दीवाने बिखरे -बिखरे 
पहले मन में क्रांति बसी थी
 अब तो दाल, नमक, आटा है.</poem>
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