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मधुमासी दिन बीत चुके हैं / सर्वत एम जमाल

रचनाकार=सर्वत एम. जमाल संग्रह= }}

मधुमासी दिन बीत चुके हैं
सुख के सागर रीत चके हैं
आज महाभारत से पहले
कौरव बाज़ी जीत चुके हैं
आँगन-आँगन सन्नाटा है ।

दुखियारों की रात बड़ी थी
पैरों में ज़जीर पड़ी थी
दशरथ तो वर भूल चुके थे
कैकेयी की आँख गड़ी थी
पुरखों की गति सिखलाती है
धर्म निभाने में घाटा है ।

ताने बाने बिखरे-बिखरे
सभी सयाने बिखरे-बिखरे
जीवन ने वो रूप दिखाया
हम दीवाने बिखरे-बिखरे
पहले मन में क्रांति बसी थी
अब तो दाल, नमक, आटा है ।