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मधुर दिन बीते / रामस्वरूप 'सिन्दूर'

मधुर दिन बीते-अनबीते!
वर्तमान में नहीं, इन्हीं दोनों में हम जीते!
 
यादों के सरगम से ऊबे,
सपनों के आसव में डूबे,
आँखें रस पीती हैं, लेकिन होंठ अश्रु पीते!
मधुर दिन बीते-अनबीते!
वर्तमान में नहीं, इन्हीं दोनों में हम जीते!

आतप ने झुठलाई काया,
सर पर बादल-भर की छाया,
सूखी पौद हरी कर देंगें, क्या कपड़े तीते!
मधुर दिन बीते-अनबीते!
वर्तमान में नहीं, इन्हीं दोनों में हम जीते!

हम पनघट की राहें भूले,
मृग मरीचिकाओं में फूले,
कन्धों के घट पड़े हुये हैं, रीते के रीते!
मधुर दिन बीते-अनबीते!
वर्तमान में नहीं, इन्हीं दोनों में हम जीते!