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मनख्या बाघ / गढ़वाली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

लोगूँ कु खेती कु काम नी होये पूरू<ref>पूरा</ref>,
यो निभागी बाघ होईगे शुरू!
एकी<ref>एक</ref> जागान<ref>जगह से</ref> बल हैकी<ref>दूसरी</ref> जागा जाँद,
जनानी चोरीक नौनोऊँ छ खाँद!
कनो निरभागी यो बाग गीजी<ref>लत पड़ गई</ref>,
हमारी आँखी आँसुन भीजी!
एकी जनानी वैन मारे धाड़ो,
मैं कू बाड़ी पकौण को करे भाड़ो।
तैं को मालिक बवराँदो<ref>बड़बड़ाता</ref> भौत,
ये पापी बागक कब औली मौत?
तै डाँडा का ऐंच दुगड़ी गौऊँ,
तख बुडड़ी मारे वैन गौं का सौऊँ!
तै बागन पकड़े बुडड़ी की गली,
ब्वारी की पकड़ी छै वीं की नली!
खाण दे बुडड़ी की ऐगे खैर,
हम बाग की डर नी औंदा भैर<ref>बाहर</ref>!
तौं द्वारू तैं अब झट लावा,
घमछंदे भायों रोटी खावा!
ऐंसू का साल नी कैकी खैर,
हम बाग की डर नी औंदा भैर!
डरदा-मरदा औंदान वो घर,
विरालों देखीक लगदी छ डर!
रुमसूम्या<ref>शाम</ref> बगत जु कुकर भूक्या,
इना नामी वंधू जु ओबरा<ref>नीचे की मंजिल</ref> लूक्या!
ओबरा लूक्या रऊ-सी<ref>गहरे तालाब</ref> माछा,
पोटगा मा डर का नरसिंह नाच्या!

शब्दार्थ
<references/>