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मनन करूं, मन है कूर कुजात / शिवदीन राम जोशी

मनन करूं, मन है कूर कुजात।
मारत और उडान पलक में, फिर ना आवे हाथ।
सतगुरू बांध रखो मेरे मन को, पर स्त्री चाहे पर धन को,
सतसंगत की बात भुला कर, करे और ही बात।
मन बस होवे कौन विधी से, शंकर नाचे धन्य सिद्धी से,
इन्द्र मुनिन्द्र नचे बहुतेरे, जन की क्या ओकात।
जप तप छांडि बजारां भागे, रैन दिवस सोवे ना जागे,
जंत्र मंत्र कोइ काम न आवे, यो चिघरत दिन रात।
याते अर्ज करूं सुनि दाता, सतगुरू सत्य ज्ञान के ज्ञाता,
शिवदीन दीन पर किज्यो किरपा, संत सयाने तात।