भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मनमा में दुखित देवोकी रानी चलली जमुन दह हे / मगही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मनमा में दुखित देवोकी रानी चलली जमुन दह<ref>नदी, झील</ref> हे।
ललना, फेर<ref>फिर, पुनः</ref> नहीं करबइ परसंग,<ref>रति-क्रिया</ref> जलम मोर अकारथ<ref>असार्थक, व्यर्थ</ref> हे॥1॥
परबइ जमुन दह जाइ, घसिए जयबइ अहे<ref>पड़ जाऊँगी</ref> दहे हे।
ललना, करबइ न बसुदेवो संग, जलम न सोवारथ<ref>सार्थक</ref> हे॥2॥
सखी दस आगे भेल, दस सखी देवोकी के पाछे भेल हे।
देवोकी, करूँ बसुदेवो जी के संग, जलम होयतो सोवारथ हे॥3॥
पहिला पहर राति सुतली,<ref>सो गई</ref> सपन एक देखली हे।
ललना, हरियर<ref>हरा</ref> केरवा<ref>केला</ref> के थंभ, दुवारी<ref>द्वार पर</ref> केतो<ref>कौन तो</ref> रोपि गेलइ हे॥4॥
दूसर पहर जब बीतल सपन एक देखली हे।
ललना, हरियर तुलसी के बिरवा, दुवारी केतो रोपि गेलइ हे॥5॥
तीसर पहर जब बीतल सपन एक देखली हे।
ललना, कोरबे<ref>कोरबा, मिट्टी आदि का बना नया छोटा पात्र, चुक्कड़</ref> नरकोरवा<ref>नारियल के ऊपरले कड़े भाग को आधा काटकर बनाया गया कोरबा या पात्र, जिसमें दही, अँचार आदि रखे जाते हैं।</ref> नरकोरबा में दहिया<ref>दही</ref> दुवारी केतो रखि गेलइ हे॥6॥
चउठे<ref>चतुर्थ</ref> पहर जब बीतल, सपन एक देखली हे।
ललना सामर<ref>साँवला, श्यामल</ref> कुमर एक सेजिया पर केउ मोरा रखि गेल हे॥7॥
एतना सपन जब सुनलथि, बसुदेवो हँसि बोलथी हे।
जलम लेतन<ref>लंेगे</ref> जदुनाथ, जलम भेल सोवारथ हे॥8॥

शब्दार्थ
<references/>