Last modified on 21 जुलाई 2011, at 02:46

"मना लूँ मन को तो सजनी / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=बलि-निर्वास / गुलाब खंडे…)
 
(पृष्ठ से सम्पूर्ण विषयवस्तु हटा रहा है)
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
 
|संग्रह=बलि-निर्वास / गुलाब खंडेलवाल
 
}}
 
[[category:गीत]]
 
<poem>
 
  
विन्ध्यावाली—
 
मना लूँ मन को तो सजनी
 
जीवनधन के बिना कटे क्योंकर पावस की रजनी!
 
तप करने निकले मनमोहन, वन के भाग्य जगे री
 
सूनी सेज पड़ी ऐसे नंदन में आग लगे री
 
सजनी तुझको रामदुहाई, उनसे कह दे जाकर
 
धूनी बनी विरहिनी जल-जल, से लें घर ही आकर
 
योगीश्वर कहलाते शंकर उमा-अधर-रस-भोगी
 
जो वियोग की पीर समझते वे हैं सच्चे योगी
 
<poem>
 

02:46, 21 जुलाई 2011 के समय का अवतरण