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मनुष्य बनो हमारी तरह / शिवप्रसाद जोशी

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तुम अगर हँसते हो
तो इसे अभिमान समझ लेंगे
तुम रोओगे
तो आत्मदया होगी

कहोगे कि तुम कपटी और चालाक नहीं
ये हुई अपनी तारीफ़
तुम कुछ नहीं कहोगे
कुछ भी नहीं
तो तुम डरपोक कहलाओगे
या तुमसे डर लगेगा
तुम बात करोगे
तो वो बतंगड़ होगी

ग़र्ज़ ये कि
तुम निकल जाओ यहाँ से
हमें यहाँ सीधे-सादे लोग चाहिए
मनुष्य होने का ये मतलब ये नहीं
दिमाग खपाएँ हर बात पर
और दिल तो हरग़िज़ नहीं