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मन्नत का धागा / अनिता ललित

प्रेम का धागा
लपेट दिया है मैनें
तुम्हारे चारों ओर.…
तुम्हारा नाम पढ़ते हुए...
तुमसे ही छुपा कर!
और बाँध दी अपनी साँसें...
मज़बूती से सभी गाँठों में!
अब मन्नत पूरी होने के पहले...
तुम चाहो तो भी उसे खोल नहीं पाओगे...
बिना मेरी साँसों को काटे …!