भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन करता है / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:42, 18 सितम्बर 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन करता है,
अपना बचपन-
रख दूँ ताले में ।

नटखटपन, ये शैतानी,
ये हँसी खिलखिलाती ।
रूठा-रूठी, मान-मनौवल,
सपनों की थाती ।
मन करता है,
यह सारा धन-
रख दूँ ताले में ।

क्या जानूँ, कल
चोर चुरा ले चुपके से आकर ।
आ जाएँ आँखों में मेरी
आँसू घबरकर ।
तब कैसे मुँह
दिखलाऊँगा
भरे उजाले में ?
मन करता है
अपना बचपन
रख दूँ ताले में ।