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मन करता है / रमेश तैलंग

मन करता है,
अपना बचपन-
रख दूँ ताले में ।

नटखटपन, ये शैतानी,
ये हँसी खिलखिलाती ।
रूठा-रूठी, मान-मनौवल,
सपनों की थाती ।
मन करता है,
यह सारा धन-
रख दूँ ताले में ।

क्या जानूँ, कल
चोर चुरा ले चुपके से आकर ।
आ जाएँ आँखों में मेरी
आँसू घबरकर ।
तब कैसे मुँह
दिखलाऊँगा
भरे उजाले में ?
मन करता है
अपना बचपन
रख दूँ ताले में ।