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मन का पाटल / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

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अपने मधुर सतत प्रवाह में मुझे बहाकर ले चल प्यारे !
निर्मलधार धार से धोकर कर दे मुझको निर्मल प्यारे !

यादों की चाँदनी रात दिन धूमिल होती नहीं कभी है
नित्य उभरती और निखरती ही रहती है हरपल प्यारे !

मन मन्दिर में फिर प्रकाश हो नव प्रभात से यदि आ जाओ ।
अरूणांबुज क्षिल उठे प्रेम का, हो अद्वेत, द्वेत गल प्यारे !

अपनेपन का धवल धाम अभिराम अगर पलभर मिल पाता
हो जाता तो अन्तः‘पुर का कोना कोना उज्ज्वल प्यारे !

सावन आया, बादल आये, हरियाली ने पर्व मनाए
काश ! अगर तुम भी आ जाते खिलती मन का पाटल प्यारे !