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मन की बात / तुलसी पिल्लई

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तुम मेरी न सोचो
पहले अपना कदम तो बढ़ाओ
मेरे द्वार तो आओ
मैं नंगे पाँव दौड़कर आऊँगी
मुझे क्या पता?
तुम्हारे मन की बात
क्या छुपा है?
मेरे लिए कोई प्रेम?
मुझे भी जिज्ञासा है जानने की
आखिर इतना तो अधिकार दो
तुम्हारे हृदय को
मेरे सामने खोलकर रख दो
किसी पुस्तक की तरह
और मैं खुद सारी बातें पढ़ सकूँ
कि मेरे लिए
तुम्हारे हृदय में क्या है?
क्या छुपा है?
मेरे लिए कोई प्रेम?
मुझे क्या पता?
तुम्हारे मन की बात
मेरे प्रति
प्रेम तो होना चाहिए
तुम्हारे उर-कमल में
अधिक न सही तो
थोड़ा बहुत ही सही
प्रेम तो मिलना चाहिए।