मन की सुहेली सब करतीं सुहागिनि सु,
अँक की अँकोर दै कै हिये हरि लायौ है ।
कान्ह मुख चूमि-चूमि सुख के समूह लै-लै,
काहू करि पातन पतोखी दूध प्यायौ है ।
'आलम' अखिल लोक-लोकनि को अँसी ईस,
सूनो कै ब्रह्माण्ड सोई गोकुल में आयौ है ।
ब्रह्म त्रिपुरारि पचि हारि रहे ध्यान धरि,
ब्रज की अहीरिनि खिलौना करि पायौ है ।