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मन के ठीक मध्य / नीरज दइया
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जो नहीं कही गई
नहीं जाएगी कही
बातों के साथ हैं
कुछ बाते ऐसी भी !
वे बातें
भुलाई नहीं जा सकती
बताई नहीं जा सकती
कभी मन के खुलने पर भी
वे बाहर नहीं आती !
कुरेद-कुरेद कर पूछने पर भी
नहीं मिलता उनका पता
उन बातों की चाह में
भटका करता है यह मन
आत्मकथा लिखते हुए भी
कथा से बाहर रखते हैं उन्हें ।
किसी गुप्त कोने में नहीं
बहुत सावधानी से उन्हें
बांध कर एक गठरी में
रखा है सृजनकर्ता ने
मन के ठीक मध्य ।
अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा