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मन चले / ओम पुरोहित ‘कागद’

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तेरे-मेरे-सब के
मन माने की बात
मन चले तो मनचले
...मौन मन मलीन !

मन के हारे
हार कथी सब ने
जीते मन ;
दौड़ाया जब भी जिस ने
उस के हाथ लगी
हार हर बार !

मन मेँ बसते
कितने सपने
कितने अपने
पालूं चाहत
सब से हो
साक्षात मिलन
इस उपक्रम मेँ
क्या मानूं जीत
क्या मानूं हार !

तेरी जीत-मेरी हार
मेरी जीत-तेरी हार
किस की जीत
किस की हार
होता साक्षात्कार
सब मन माने की बात !