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मन न निराश करो / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

मन न निराश करो
मन न निराश करो।
मानव हो मानव की ताकत में विश्वास करो॥

हार-जीत तो लगी हमेशा
ही रहती जीवन के संग में;
घबरा कर इनसे ओ साथी,
रुकना कभी नहीं है मग में।
पथ के काँटों पर भी चलने का अभ्यास करो॥1॥

जो सुख के दिन वे न रहे तो
ये दुख की रातें न रहेंगी;
बीत गयीं जो बातें वे ही,
तो ये भी बातें न रहेंगी।
हेर-फेर यह सिर्फ समय का, मन न उदास करो॥2॥

माना उलटे दिन आने पर
साथ नहीं कोई देता है,
पर उलटी धारा में नाविक
ही अपनी नौका खेता है।
और किसी की नहीं, सिर्फ तुम अपनी आस करो॥3॥

देख टूटती डाल वृक्ष की
विहग कभी क्या घबराता है?
पंखों का विश्वास लिये वह
तुरत गगन में उड़ जाता है।
बाँध पैर में पंख पार जीवन-आकाश करो॥4॥

24.6.61