Last modified on 30 अगस्त 2014, at 14:45

मन न हुए मन से / देवेन्द्र कुमार

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:45, 30 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवेन्द्र कुमार |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मन न हुए मन से
हर क्षण कटते रहे किसी छन से ।

तुमसे-उनसे
मेरी निस्बत
क्या-क्या बात हुई ।
अगर नहीं, तो
फिर यह ऐसा क्यों ?
दिन की गरमी
रातों की ठण्डक
चायों की तासीर
समाप्त हुई
एक रोज़ पूछा निज दर्पन से ।

मन न हुए मन से
हर क्षण कटते रहे किसी छन से ।