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मन बुझाएँ रातरातभर / सुमन पोखरेल

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तिम्रो नाम गुन्गुनाएँ रातरातभर
खै किन म छटपटाएँ रातरातभर
 
भररात पर्खेर बसेँ तिमी आउली भनी
एक्लै नै मन बुझाएँ रातरातभर
 
मनमा कुनै रहर जागिरह्यो पलपल
नसोध, कसरी दबाएँ रातरातभर
 
तिमी खुसी हौली, मलाई नै बिर्सेर
मैले भने मन जलाएँ रातरातभर
 
उनलाई सम्झेदेखि छैन होश सुमन !
सुनाइ'दे, कसरी म बौलाएँ रातरातभर