Last modified on 30 सितम्बर 2013, at 20:31

मन बृंदावन / बच्चन पाठक 'सलिल'

जब हमार लागेला ध्यान, लउकेले श्रीकृष्ण भगवान।
मुरली बजावत आनन्द वरिसावेले, एह युग में शान्ति-गीत गावेले।
तब लागेला, हमार ई मन, साँचो के भइल बा वृन्दावन।
जब हम रहीला जागल, शान्ति रहेले भागल।
तब चेतना समुझावेले, हमरा के बतावेले, आधा मन बृन्दावन धाम,
आधा लिखाइल बा, कालिया नाग के नाम।
ओहिजा बा ईर्ष्या आ द्वेष, कइसे रही शान्ति के लवलेस।
चाहतारऽ कि आनन्द पावऽ त आधा ना, पूरा मन के वृन्दावन बनावऽ।