भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन बौरा गया / राजेश गोयल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पा लिया जब से तुम्हें है, मन मेरा बौरा गया है।
क्या इसी को प्यार कहते क्या, यही जीवन नया है॥
दे मुझे सजनी निमंत्रण,
स्वपन की बेला में आयी।
मिल गये उपहार अनुपम,
प्रीत ने डोली सजायी॥
पा लिया उपहार जब से, मन में कुछ-कुछ हो गया है।
क्या इसी को प्यार कहते, क्या यही जीवन नया है॥
हे अधर मुस्कान लाली,
नयन में मधुमाश छाया।
ली कसम जब से तुम्हारी,
दीप मन का जगमगाया॥
ले रहा अंगड़ाई मौसम, याद कोई आ गया है।
क्या इसी को प्यार कहते ,क्या यही जीवन नया है॥
बज उठे नूपुर कहीं पर,
दूर कोई गा रहा है।
रंग जीवन के संजोये,
पास कोई आ रहा है॥
गीत अधरांे पर मिलन का, आज कोई आ गया है।
क्या इसी को प्यार कहते, क्या यही जीवन नया है॥