मन मेरा उलझनों में रहता है
और वो महफ़िलों में रहता है
आग मज़हब की जिसने फैलाई
खुद तो वो काफ़िरों में रहता है
इश्क़ में था किसी ज़माने में
आज वो पागलों में रहता है
बीच लहरों में जो मज़ा साहिब
वो कहाँ साहिलों में रहता है
खौफ़ शायद किसी का है उसको
आजकल काफिलों में रहता है