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मन मैले तन हैं उजले / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

मन मैले तन हैं उजले
कौन बुरे हैं कौन भले

चिड़ियों ने चुग खेत लिया
अब क्यो होगा हाथ मले

घर भर में उजियारा है
अंधकार है दीप तले

हम रही कंटक पथ के
कौन हमारे साथ चले

हमें व्याथाओं का डर क्या
हम पीड़ा की गोद पले

समझा था मधुपात्र जिन्हें
वे प्याले विष के निकले

जितना कोसा गया हमें
उतना फूले ओ फले

आग लगी दिल में ऐसी
अरमानों के महल जले

धन्यवाद का पात्र वही
जो गिर-गिर कर फिर संभले

ऐसी कोई ग़ज़ल सुना
‘मधुप’ सभी का मन बहले