भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन है मन का सकल बखेरा / शिवदीन राम जोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन है, मन का सकल बखेरा |
मन लग जाये भक्ति करन में,सोचूं साँझ सवेरा ||
मन माने माने ना कहना, पागल मन के संग में रहना |
है यह संकट विकट मन ही का, मन है नार भगेरा ||
लागे नहीं भजन में मन है, मन ना लागे बुढ्ढा तन है |
उमर बीते मन के कारन, भोगे भोग घनेरा ||
शिवदीन गया संतन के द्वारे,मन आगे ना जोर चला रे |
उरझी डोरी सुरझे कैसे, यंत्र मन्त्र सब हेरा ||
मन का मता पता ना पाया, बार-बार मन ने भटकाया |
मिटे कवन विधि आना जाना, चौरासी का फेरा ||