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मन / तसलीमा नसरीन

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पेड़-पौधों को मार-काट कर
चूर-चूर कर नक़्क़ाशीदार घरों को
माचिस की डिबियों-जैसे बदरंग मकान
क्यों बना रहा है रे?
तुझे हुआ क्या है?
तुझे क्या स्थापत्य, स्मृति और सुन्दरता पर
पहले-जैसा भरोसा नहीं रहा
तुझे क्या पैसों की बहुत दरकार है
कोलकाता, तू इतने पैसों का करेगा क्या
न्यूयॉर्क बनेगा?

तेरी माँगने की आदत बहुत बढ़ने लगी है
किसको धोखा देकर नाम कमाएगा

क्या तुड़वा कर, क्या बनेगा .... तू इन्हीं सब में व्यस्त है!
तेरे शाम के तमाम अड्डे
मरे हुए लोगों की मानिन्द हँसने लगते हैं
जब बोतल से बाहर आ गए जिन्न को पकड़ने में
तू मुँह के बल गिर पड़ता है
और आधी रात को इसको-उसको गालियाँ बकता
जैसे भी हो सके दो बोतल खींचकर
औंधे मुँह बिस्तर पर धँसने के लिए लड़खड़ाता हुआ चला जाता है।
तू कैसा है रे कोलकाता!
जा, बकवास मत कर, स्वस्थ हो तो कोई इतना रुपया-रुपया करता है क्या!
गढ़वाता है इतने सारे गहने?
तुझे क्या अब ओस को छूने का समय मिलता है?
इन्द्रधनुष दिखाई देने पर सबकुछ छोड़ तू ठिठकता नहीं?
अगर दुःख दिखाई देता है तो
कहीं, किसी के पास जाकर बैठता है?
तेरा वह मन क्या अब ज़रा-सा भी नहीं बचा?
जेब में पैसे नहीं हैं, फिर भी ख़ुद को
राजा-जैसा महसूस करने का मन करता है?

मूल बांग्ला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी