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ममतामयी ! / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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76
पलकें चूमूँ
तुम्हें गले लगाऊँ
जीवन पाऊँ।
77
क्षितिज पार
केवल इंतज़ार
धरा- गगन।
78
महामिलन
सृष्टि झूमे खुशी से
मादक मन।
79
ममतामयी !
तुझसे रस पाया
जीना सिखाया।
80
तुम न होते
रस मर ही जाता
कौन लुभाता।
81
रस छलके
तेरे नयनों से जो
मुझे सींचता।
82
वाणी का जादू
बनके आलिंगन
मुझे है बाँधे।
83
अधर -प्यास
बनके मधुमास
मुझे टेरती।
84
हो जाऊँ लय
तुम में एक दिन
वही है मुक्ति।
85
कहीं न जाऊँ
छुप तेरे सीने में
स्वर्ग पा जाऊँ।
-०-