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ममता थी गज़ब जिसमें,गज़बनाक हो गयी / शर्मिष्ठा पाण्डेय

ममता थी गज़ब जिसमें, गज़बनाक हो गयी
आते बहू के अम्मा, खतरनाक हो गयी

खोली न उम्र भर जुबान गूंगी ही रही
अब सामने बहू के वो बेबाक हो गयी

हल्दी-नमक दिए बिन, कहे दाल बना दो
जादुई रसोई की वो सरताज हो गयी

भाये न फूटी आँख रूपरंग बहू का
डाले खिजाब बालों में मुमताज हो गयी

आदम के ज़माने का रख दहेज़, बक्स में
प्राचीन, पुरातत्व की असबाब हो गयी

खबरिया चैनलों सी रखती ब्यौरा हर मिनट
अम्मा नज़र में, उड़ती इक उकाब हो गयी

जोरू का है गुलाम मुआ बेटा ये अपना
तानों की शपा मुकम्मल किताब हो गयी