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मयख़ाने का हूँ मैं भी मिन्जुमलए-खासाना / कांतिमोहन 'सोज़'

मयख़ाने का हूँ मैं भी मिन्जुमलए-खासाना I
ऐ साक़िआ मस्ताना भर दे मेरा पैमाना II

सौ बार ज़माने की तज़लील सही लेकिन,
एक बार ज़माने को मैंने नहीं गर्दाना I

तुमने भी नहीं पी है ऐ शेख चलो माना,
पर ये तो बताओ क्यूँ मुझको नहीं पहचाना I

मैं ले तो चलूँ तुझको लेकिन ये तरद्दुद है,
जाने से तेरे काबा बन जाय न बुतख़ाना I

यारों का ये दावा है कुछ दाल में काला है,
उस पैमांशिकन का था अन्दाज़ रफ़ीक़ाना I

कुछ बात है जो चलकर आया हूँ यहाँ वरना,
मैं जाम जहां रख दूँ बन जाता है मयख़ाना I

इस दौर में मुश्किल है ऐ सोज़ कहीं जाना
चल पड़ती है सरगोशी दीवाना है दीवाना II