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मरता नहीं है कोई किसी के लिए मगर / शिवशंकर मिश्र

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मरता नहीं है कोई किसी के लिए मगर
जी पाया भी कभी न अकेला कोई बशर
यों ही बने ये घर न तो यों ही बना समाज
यों ही बसे न गाँव, न यों ही बसे शहर