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मरहले सख़्त बहुत पेश-ए-नज़र भी आए / सिराज अजमली

मरहले सख़्त बहुत पेश-ए-नज़र भी आए
हम मगर तय ये सफ़र शान से कर भी आए

इस सफ़र में र्क ऐसे भी मिले लोग हमें
जो बुलंदी पे गए और उतर भी आए

सिर्फ़ होने से कहाँ मसअला हल होता है
पस-ए-दीवार कोई है तो नज़र भी आए

दिल अगर है तो न हो दर्द से ख़ाली किसी तौर
आँख अगर है तो किसी बात पे भर भी आए