एक सूखा तट रहा है
नदी का जल घट रहा है
छोड़कर
लहरें हटीं पीछे
पुराने घाट सारे
मछलियाँ कीचड़-सनी
हैं खोजतीं डूबे किनारे
शंख रेती पर पड़ा
पिछले सुरों को रट रहा है
राख के हैं ढेर
जिन पर
सीपियाँ सोयी हुई हैं
नागफनियों की नुमायश
लोग कहते - जलकुईं हैं
नदी के उस पार का जंगल
सुना है - कट रहा है
पेड़ पर रुकतीं हवाएँ
डूबकर
लौटी ज़हर में
बादलों के चित्र लटके
मरी झीलों के शहर में
और पानी आँख का भी
सुन रहे हैं - बँट रहा है