Last modified on 2 अक्टूबर 2016, at 07:06

मर्यादा / चिराग़ जैन

Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:06, 2 अक्टूबर 2016 का अवतरण (चिराग जैन की कविता मर्यादा जोड़ी)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


मैंने एक गोला बनाया
और फिर
उसे चार हिस्सों में बाँट दिया
तभी किसी ने कहा-
”इन चारों हिस्सों में
अलग-अलग रंग भरो”
…तब मुझे अहसास हुआ
कि नए रंग का
अपनी मर्यादा में रहना
तभी संभव है
जब पुराना रंग
अपनी सीमाओं में
पूरी तरह जम जाए!