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मर गए उन पर तो जीना आ गया / राजेन्द्र स्वर्णकार

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जामे - मय आँखों से पीना आ गया
मर गए उन पर तो जीना आ गया

हाथ का पत्थर किनारे रख दिया
तब से जीने का क़रीना आ गया

गर्म मौसम की हवा जब झेल ली
तब से सावन का महीना आ गया

पाँव माँ के छू लिए हो सरनिगूं
हाथ में गोया दफ़ीना आ गया

नाम उसका जब तलातुम में लिया
मेरी जानिब हर सफ़ीना आ गया

मेरे इंसां की बुलंदी देख कर
कुछ पहाड़ों को पसीना आ गया

ज़हब -से अश्आर हैं राजेन्द्र के
लफ़्ज़-लफ़्ज़ में इक नगीना आ गया