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मलिया के अँगनवाँ चननवाँ केरा गाछ / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मलिया के अँगनवाँ चननवाँ केरा गाछ<ref>वृक्ष</ref>।
ताहि तर<ref>उसके नीचे</ref> सुगवा<ref>तोता</ref> सगुनवा<ref>शकुन</ref> ले ले ठाढ़॥1॥
पहिला सगुनवाँ माइ हे, मलिया के देल।
सोने के मउरिया<ref>मोर</ref> लाइ मड़वा धराय॥2॥
दूसरे सगुनवाँ माइ हे, कुम्हरा<ref>कुम्भकार</ref> के देल।
सोने के कलसवा लाइ मड़वा धराय॥3॥
तीसरे सगुनवाँ माइ हे, बम्हनवाँ के देल।
सोने के पतरबा<ref>पत्रा, पंचांग। वस्तुतः; यहाँ विवाह पद्धतिवाली पुस्तक से तात्पर्य है, जो पत्रानुमा होती है।</ref> लाइ मड़वा धराय॥4॥
चउथे<ref>चतुर्थ</ref> सगुनवाँ माइ हे, बेटी के बाबा के देल।
अपनी दुलहिनियाँ आनि चउका बइठाय॥5॥
पँचवाँ सगुनवाँ माइ हे, बेटा के बाबा के देल।
अपन दुलहवा आनि चउका बइठाय॥6॥
गरजे लागल कारी बदरिया, बरसे लागल मेघ।
भीजे लागल दुलहा दुलहिन, जोड़ले सनेह<ref>स्नेह। दुलहिन की चादर के खूँट में दुलहा अपनी चुटकी से सिन्दूर रखता है और उसे फिर दुलहे की चादर के खूँट के साथ जोड़ दिया जाता है। उसे पति का स्नेह सूचक माना जाता है, इसीलिए वह ‘सनेह’ कहलाता है।</ref>॥7॥
दुलहिन पुछये दुलहवा साधु<ref>अच्छी, मनभावन</ref> बात।
कइसे-कइसे<ref>किस तरह</ref> सजल<ref>सजी</ref> जी परभु अपन बरियात<ref>बरात</ref>॥8॥
धोयले धोयले कपड़ा रँगल-रँगल दाँत।
छयले छयले गभरू<ref>वह स्वस्थ नवयुवक जिसकी मसें भींग रही हों</ref> सजल बरियात॥9॥
दुलहा जे पूछये दुलहिनियाँ साधु बात।
कइसे कइसे सीखल धानि राम रसोई<ref>रसोई के लिए लोक प्रचलित शब्द</ref>॥10॥
बतिसो हँड़ियवा जी परभू, छप्पन परकार।
बाबा घरे सिखली जी परभू राम के रसोई।

शब्दार्थ
<references/>