Last modified on 24 नवम्बर 2012, at 21:42

मस्ती का गीत / विमल राजस्थानी

बीता है आज खुशी से दिन फिर कल की चिन्ता कौन करे
तकदीरों पर, तदबीरों पर
युग-युग से मानव रोता है
उसको समझाये कौन यह कि-
होनेवाला ही होता है
दुनिया की कौन कहे-अपने
तन से दो दिन का नाता है
आता नर खाली हाथ और-
खाली वापस हो जाता है
पिंजरे से दूर खड़ा कोई-
जब चुपके हमें बुलाता है
उड़ जाती प्राण-पिकी हौले,
 घर सुलग-सुलग जल जाता है
पीछे मुट्ठी भर भस्म और-
यश-अपयश ही रह जाता है
जग इन बातों को क्या समझे
जग इस चर्चा को क्या जाने
दुख में ही सुख पाने वाले
अल्हड़ कवि को क्या पहचाने
मेरे कवि ने यह समझा है
मेरे कवि ने यह जाना है
अपने को, ईश्वर को, इनको-
उनको, सबको पहचाना है
इसलिए हमेशा कहता हूँ-दुख दर्दों के इस आलम में
आँसू की मधुरिम रिमझिम में-मंगल की चिन्ता कौन करे ?
मैं तो न कभी मन्दिर-मन्दिर
घण्टियाँ डुलाता हूँ
मैं तो न पत्थरों पर कोमल
फल-फूल चढ़ाता हूँ
मैं तो अपने मन-मन्दिर में
भगवान बुलाता हूँ
आँसू के फूल चढ़ा, दर्दों-
की बीन बजाता हूँ
गाता हूँ दुख के गीत-
झूमकर उसे सुनाता हूँ
कुछ ‘उसकी’ सुनता-गुनता हूँ
कुछ ‘उसे’ सुनाता हूँ
वर्षों से इसी मधुर मंगल-
एकांत अर्चना में-
अंतर की आँखें खोल
ब्रह्म के दर्शन पाता हूँ
जब घर में ही भगवान बसे, जंगल की चिन्ता कौन करे
पोथी पतरे, चंदन-चिमटे, वल्कल की चिन्ता कौन करे ?
पीने को अंजलि भर जल,
खाने को मुट्ठी भर नाज मिला
जब तन को कुछ चिथड़े; सिर ढँपने-
को काँटो का ताज मिला
गाने को जीवन-गीत, बजाने-
को दर्दों का साज मिला
जब नभ से क्षिति तक गूँज
रही-आवाजों का अंदाज मिला
अंतर की आँखें खुलीं और-
जब जन्म-मरण का राज़ खुला
पावन आँसू की बूँदों से जब-
प्राणों का अज्ञान धुला
तब चरणामृत, तुलसीदास, गंगाजल की चिन्ता कौन करे ?
जब अपनी राह अलग जग के दलदल की चिन्ता कौन करे ?