भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"महकती फ़ज़ा का गुमाँ बन गया मैं / डी.एम.मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (Dkspoet ने महकते गुलों का गुमाँ बन गया मैं / डी.एम.मिश्र पृष्ठ [[महकती फ़ज़ा का गुमाँ बन गया मैं / डी.एम.म...)
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatGhazal}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
महकते गुलों का गुमाँ बन गया मैं
+
महकती फ़ज़ा का गुमाँ बन गया मैं।
 
कभी गुल था अब गुलिस्ताँ बन गया मैं।
 
कभी गुल था अब गुलिस्ताँ बन गया मैं।
  
बहुत बार टूटा मगर मैं न हारा
+
बहुत बार टूटा मगर मैं न हारा,
 
बिखर कर उड़ा कहकशाँ बन गया मैं।
 
बिखर कर उड़ा कहकशाँ बन गया मैं।
  
उसी ने रुलाया , उसी ने सताया
+
उसी ने रुलाया , उसी ने सताया,
 
उसी का मगर मेहरबाँ बन गया मैं।
 
उसी का मगर मेहरबाँ बन गया मैं।
  
तेरे प्यार ने मेरी दुनिया बदल दी
+
तेरे प्यार ने मेरी दुनिया बदल दी,
 
मोहब्बत की इक दास्ताँ बन गया मैं।
 
मोहब्बत की इक दास्ताँ बन गया मैं।
  
मेरी मुफ़लिसी ही मेरा इम्तहाँ  है
+
मेरी मुफ़लिसी ही मेरा इम्तहाँ  है,
 
मिली जब न छत आसमाँ बन गया मैं।
 
मिली जब न छत आसमाँ बन गया मैं।
  
ग़ज़ल  मेरी  ताक़त, ग़ज़ल  ही जुनूँ है   
+
ग़ज़ल  मेरी  ताक़त, ग़ज़ल  ही जुनूँ है,  
 
जो गूँगे थे उनकी जुबाँ बन गया मैं।
 
जो गूँगे थे उनकी जुबाँ बन गया मैं।
 
</poem>
 
</poem>

11:15, 5 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

महकती फ़ज़ा का गुमाँ बन गया मैं।
कभी गुल था अब गुलिस्ताँ बन गया मैं।

बहुत बार टूटा मगर मैं न हारा,
बिखर कर उड़ा कहकशाँ बन गया मैं।

उसी ने रुलाया , उसी ने सताया,
उसी का मगर मेहरबाँ बन गया मैं।

तेरे प्यार ने मेरी दुनिया बदल दी,
मोहब्बत की इक दास्ताँ बन गया मैं।

मेरी मुफ़लिसी ही मेरा इम्तहाँ है,
मिली जब न छत आसमाँ बन गया मैं।

ग़ज़ल मेरी ताक़त, ग़ज़ल ही जुनूँ है,
जो गूँगे थे उनकी जुबाँ बन गया मैं।